माननीय अध्यक्ष महोदय, आदरणीय निर्णायकगण तथा उपस्थित सम्मानित साथियों,
आज मैं पूर्ण निष्ठा और दृढ़ विश्वास के साथ इस प्रस्ताव के पक्ष में खड़ा हूँ कि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का ‘वंदे मातरम्’ भारत की राष्ट्रीय पहचान का वास्तविक सार प्रस्तुत करता है।
भारत केवल एक राजनीतिक नक्शा नहीं है।
भारत एक सभ्यतागत पहचान है — जिसे जोड़कर रखती है हमारी साझा भावनाएँ, सांस्कृतिक स्मृतियाँ और उस भूमि के प्रति श्रद्धा जिसने हमें जन्म दिया और पोषित किया।
वंदे मातरम् इसी आत्मा का प्रतीक है — हमारी संविधानिक पहचान बनने से बहुत पहले से।
1. गीत का अर्थ और भावना
सबसे पहले, इसके अर्थ को समझें।
वंदे मातरम् का literal अर्थ है —
“हे मातृभूमि, मैं आपको प्रणाम करता हूँ”
इस गीत में भारत को एक दिव्य, पालन-पोषण करने वाली, पवित्र माता के रूप में दर्शाया गया है।
गीत में माँ-भारत को इस रूप में चित्रित किया गया है:
-
हरी-भरी फसलें और समृद्ध खेत
-
बहती नदियाँ, ठंडी हवाएँ
-
भव्य पर्वत और प्राकृतिक सौन्दर्य
-
रक्षक, पालनहार और आशीर्वाददायिनी माँ
माता का वर्णन किया गया है:
-
जल की तरह पवित्र
-
स्वतंत्रता जितनी मीठी
-
दुर्गा जैसी शक्तिशाली
-
लक्ष्मी जैसी करुणामयी
-
सरस्वती जैसी ज्ञानमयी
संक्षेप में, यह गीत माँ-भारत के प्रति गहन प्रेम, कृतज्ञता और समर्पण का भाव है — जो हमें जीवन, अन्न, आश्रय और आध्यात्मिक शक्ति देती है, और हमसे त्याग और कर्तव्य का आह्वान करती है।
यह केवल राष्ट्रवाद नहीं — यह सभ्यतागत भक्ति है।
2. एक राष्ट्र को जगाने वाला गीत
19वीं शताब्दी के अंत में रचित यह गीत उस समय राष्ट्रभावना की चिंगारी बना, जब भारत के पास कोई राजनीतिक संस्था नहीं थी — लेकिन उसकी सांस्कृतिक आत्मा जीवित थी।
1905 के स्वदेशी आंदोलन में यह स्वतंत्रता का नारा बन गया।
क्रांतिकारी, विद्यार्थी, आम लोग — सब इसकी ध्वनि पर प्रेरित हुए।
यहाँ तक कि इसकी शक्ति से भयभीत होकर ब्रिटिश शासन ने इसे प्रतिबंधित कर दिया।
एक गीत तभी खतरा बनता है
जब वह दिलों को जोड़ दे और साहस भर दे।
3. भारतीय पहचान का प्रतिरूप
भारत की राष्ट्रीय पहचान केवल कानून पर आधारित नहीं है,
बल्कि भावना, श्रद्धा और कर्तव्य पर टिकी है।
वंदे मातरम् इसमें दर्शाता है:
-
आध्यात्मिक राष्ट्रवाद
-
प्रकृति के प्रति सम्मान
-
सांस्कृतिक एकता
-
मातृभूमि के लिए बलिदान का भाव
यह भूगोल की बात नहीं करता —
यह माँ-भूमि के प्रति पवित्र संबंध की बात करता है — जो भारतीय विचार का मूल है।
4. राष्ट्रीय विचारकों का समर्थन
भारत के महान नेताओं ने इस गीत को राष्ट्र-आत्मा का रूप माना:
-
रवींद्रनाथ टैगोर — “इस गीत ने राष्ट्र को जगाया”
-
श्री अरबिंदो — “बंकिम राष्ट्रवाद के ऋषि हैं”
-
सुभाष चंद्र बोस — इसे आज़ादी का युद्ध-घोष बनाया
यह केवल प्रशंसा नहीं —
यह ऐतिहासिक प्रमाण है कि राष्ट्रीय चेतना के शिल्पियों ने इस गीत को भारत की आत्मा माना।
5. राष्ट्रगान का पूरक
स्पष्ट करना आवश्यक है:
वंदे मातरम् का सम्मान, जन गण मन को कम नहीं करता।
बल्कि:
-
वंदे मातरम् — जागरण का गीत
-
जन गण मन — गणराज्य का गीत
एक ने स्वतंत्रता की भावना जगाई,
दूसरे ने राष्ट्र-राज्य के आदर्श स्थापित किए।
संविधान संरचना देता है,
सभ्यता पहचान देती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, वंदे मातरम् केवल कविता नहीं है —
यह भारतीय राष्ट्रीय चेतना का भावनात्मक और आध्यात्मिक आधार है।
बंकिम चंद्र ने केवल शब्द नहीं दिए —
उन्होंने एक भाव, एक विश्वास, और एक ज्वाला दी।
और जब तक यह भूमि हमें पोषित करती रहेगी,
ये शब्द हमारी आत्मा में गूंजते रहेंगे:
वंदे मातरम् — हे मातृभूमि, तुम्हें प्रणाम।
धन्यवाद।
0 Comments